बुधवार, 4 मई 2022

अच्छाई


हमारे दैनिक जीवन में बहुधा सुनने में आता है कि फलां व्यक्ति बुरा है या फलां व्यक्ति अच्छा है। बुरे की बात तो समझ में आती है पर अच्छा कौन होता है, अच्छाई क्या और कैसी होती है।

वास्तव में देखा जाए तो अच्छाई को किसी परिभाषा में बांध कर उसकी व्यापकता को सिमित नहीं किया जा सकता।

अभी हाल की बात है मेरे दामाद की ड्यूटी मेरे क्षेत्र में परीक्षक के रूप में लगी दसवी के बोर्ड एग्जाम में। बेटी ने फ़ोन कर खबर की और दामाद व् उनके मित्र के लिए भोजन आदि की व्यवस्था हेतु कहा।

भोजन के समय हमारे दामाद व् उनके मित्र त्रिपाठी जी साथ में आये। शुरुआत औपचारिक बातचीत से हुई फिर डिनर टेबल पर भी बातचीत हुई। फिर विदाई के पहले बातचीत का आखरी दौर चला। त्रिपाठी जी हमारे आवाभगत से अति संतुष्ट दिखे और उनकी जुबान पर भी वही बात थी।

सर, आज का भोजन बहुत ही स्वादिस्ट रहा, आप लोगों से मिलकर बड़ा अच्छा लगा, कुछ कुछ लोग, कुछ कुछ मुलाकातें, जिंदगी में हमेशा एक मधुर स्मरण बन कर जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं और मेरे लिए आज की मुलाकात वैसी ही याद बन कर हमेशा जिंदगी में रहेगी।

त्रिपाठी जी, आप एक पढ़े लिखे, सुलझे हुए एक अच्छे इंसान हैं इसीलिए आप सामने वालों में भी अच्छाई देखते हैं, कहते हैं न 'आप भला तो जग भला' ; वैसे भी अच्छाई की परिभाषा हर व्यक्ति के स्वभाव के अनुरूप बदलती जाती है।

त्रिपाठी जी एकटक मेरी तरफ देखने लगे और ध्यान से सुनने के बाद बोले -

सर, आपके इसी तरह की सोच से अच्छाई का रास्ता निकलता है और सामने वाले के मन मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, धन्य हैं आपकी संतान जो आपकी छत्र छाया में इस तरह के विचार और संस्कार ले कर पले बढ़े हैं, कभी समय मिला तो उनसे भी जरूर मिलूंगा।

त्रिपाठी जी, हमारे पास धैर्य की बहुत कमी होती है जिसके चलते हम बिना कोई देर किये सामने वाले के बारे में एक धारणा बना लेते हैं कि फलां बुरा है या अच्छा है। अपने आस पास कोई भी घटना होती है तुरन्त अपना निर्णय सुना देते हैं, हम बड़े ही जजमेंटल हो जाते हैं। गुस्से से तिलमिला जाते हैं और अपना धैर्य खो बैठते हैं। कहते हैं न 

गुस्सा अकेले आता है मगर
हमसे सारी अच्छाइयां ले जाता है
सब्र भी अकेला आता है मगर
हमें सारी अच्छाइयां दे जाता है

अभी कुछ समय पहले की ही घटना है पता लगा मेरा अपना एक परिचित सुधीर दास अपने बेटे बबलू का घर छोड़ कर वृद्धाश्रम चला गया है। 

मुझे भी यकीन नहीं हुआ, उसके बेटे पर क्रोध आया और मुझसे रहा न गया, उसी शाम उसके बेटे के पास जा कर बिना रुके जी भर कर डांट पिलाई। उतने में बहु आ कर मुझे घर के अंदर बिठाई। बबलू एक शब्द नहीं कहा, सिर्फ मेरा डांट सुनता रहा।

उतने में सुधीर की बेटी रानी सामने आई और मेरे चरण स्पर्श कर आशीर्वाद ली और मेरे बगल में बैठ गई।

मैंने पूछा

तू बता रानी इस उमर में ये सब जरूरी था, उसने तुम दोनों को तुम्हारी माँ के गुजरने के बाद माँ बाप दोनों बन कर देखभाल की और तुम दोनों में ही अपनी दुनिया देखी, क्या उन सबका तुम दोनों इस तरह हिसाब चुका रहे हो।

रानी बोली

अंकल आप पापा के अच्छे दोस्त हैं और हम दोनों परिवारों का सालों पुराना रिश्ता है, अगर मैं या बबलू कुछ कहते हैं तो छोटी मुंह बड़ी बात होगी, आप ही कभी पापा से मिल कर पूछ लीजियेगा कि वो क्या चाहते हैं।

मुझ से और रहा न गया और मैं गाड़ी उठाया और सीधे उस वृद्धाश्रम की तरफ बढ़ गया जिसमे मेरा दोस्त सुधीर रह रहा था।

जैसे ही वृद्धाश्रम के द्वार पर पहुंचा तो अंदर से जोर जोर के ठहाके सुनाई पड़े। मैं सीधे अंदर चला गया। वहां पर सुधीर अपनी हमउम्र कुछ चार पांच बुजुर्गों के साथ बातचीत में तल्लीन था और बीच बीच में किसी बात पर सब ठहाके लगा रहे थे।

मैंने गुस्से में चिल्ला कर पुकारा

सुधीर, ये क्या तमाशा है कि तू घर छोड़ कर यहाँ रहने को आ गया, ये भी जरूरी नहीं समझा कि एक बार इस दोस्त से विचार विमर्श कर लेता। मैं अभी तेरे घर से ही आ रहा हूँ, मैंने बबलू और रानी को खूब खरी खोटी सुना कर आ रहा हूँ।

तू बैठ तो सही, सुधीर बोला, मैं वहीं पास में पड़े कुर्सी खींचकर बैठ गया। तब सुधीर बोलने लगा।

तू तो जनता है कि मैं कभी भी किसी के परेशानी का कारण बनना नहीं चाहता। बबलू और रानी दोनों सर्विस में हैं, दो छोटे बच्चे हैं उनकी जिम्मेदारी अलग। चारो सुबह निकल जाते हैं तो फिर शाम को ही लौटते हैं। शुरू शुरू में बहु सुबह सुबह चारो का टिफिन बांध कर मेरे लिए भी खाना बना कर रख देती थी और मैं दोपहर को गरम कर भोजन कर लेता था।

वो लोग बहुत चाह कर भी समय नहीं दे पा रहे थे। फिर दोनों ने ये फैसला भी कर लिया कि बहु नौकरी छोड़ कर घर और मेरी देखभाल करेगी। जब मुझे ये बात पता लगी तो मुझे आत्मग्लानि महसूस होने लगी कि मेरे खातिर ये लोग इतना बड़ा त्याग करने जा रहे हैं।

एक रविवार भोजन के वक्त मैंने इसी मुद्दे पर चर्चा की और अपना निर्णय बताया, बस बहु बेटा दोनों रोने लगे, तुरन्त रानी को फोन कर दिए, वो अलग डांटने लगी। ये सब देख मुझे बहुत ख़ुशी हुई और मेरे अंदर दिल के कोने से आवाज आई "बेवकूफ इतना चाहने वाली संतान होने के बावजूद वृद्धाश्रम की बात तेरे मन में कैसे आई"

फिर क्या दिल और दिमाग में संघर्ष चालू, दिल कहे रुक जा, दिमाग कहे नहीं, इतना स्वार्थी मत बन, उन बच्चों का सोच, निजी नौकरी, दोनों बहू बेटे के नौकरी करने के बावजूद मुश्किल से घर चलता है और अगर बहू नौकरी छोड़ दे तो फिर घर कैसे चलेगा।

दूसरी बात बहु बेटा चाह कर भी समय नहीं निकाल पा रहे हैं, अगर समय देते हैं तो बहू को ट्यूशन छोड़ना पड़ता, मैं भी दिन भर अकेला रह नहीं पा रहा था। और बहुत सोच समझ कर, बबलू व् रानी को बड़ी मुश्किल से मना कर यहाँ आ पाया हूँ, इसमें उन दोनों की रत्ती भर भी दोष नहीं है तू बेकार में ही उनको डांट पिला दी।

तब मुझे अपने व्यवहार पर पश्चाताप हुआ और मेरे इस तरह के रूखे व्यवहार पर उन दोनों के सकारात्मक प्रतिक्रिया को बिना सराहे नहीं रह सका। 

तब मुझे ये एहसास हुआ कि हमें कभी भी बिना पूरे परिस्थितियों को जाने सीधे अपने निर्णय दूसरों पर थोपकर जजमेंटल नहीं होना चाहिए। 

फिर बोला देखिये त्रिपाठी जी

फिर यहां आ कर हम उसी मोड़ पर पहुंच गए हैं जहां हमें अच्छाई की परिभाषा खोजने की जरूरत है कि यहाँ कौन अच्छा है, सुधीर, एक पिता या बेटा बहु। सभी तो अच्छे हैं बस अपने अपने अच्छाई की अपनी अपनी परिभाषा है।


शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

स्पष्टवादी

हम अक्सर देखते हैं कि अपने परिवार, दोस्त या समाज में कई तरह के लोग मिलते हैं, उनकी सोच, उनकी मानसिकता अलग अलग होती है। मुझे इन सब में जो बात दिल तक पहुंचती है वो है सच्चाई, ईमानदारी, सादगी और मुख्य रूप से स्पष्टवादी । स्पष्टवादी या स्पष्टवक्ता वो होता है जो बिना किसी भय या संकोच के बोलने वाला या कहने वाला व्यक्ति, स्पष्ट या खरी बात कहने वाला, वो जो साफ साफ बातें कहता हो। खरा आदमी किसी से चिकनी चुपड़ी बातें नहीं करता। खरा व्यक्ति जो सामने वाले में देखता है या महसूस करता है वह सामने वाले के मुंह पर बोल देता है भले ही अगला इससे बुरा मान जाए या रूठ जाए। ऐसे स्पष्टवादी लोगों को समाज में एक और नाम दिया है "मुंहफट" स्पष्टवादी व् मुंहफठ में गौर करने पर एक स्पष्ट रेखा खींची होती है, स्पष्टवादी का कभी भी सामने वाले को उसकी वास्तविकता से अवगत कराता है भले ही उसकी बातें सामने वाले को नापसन्द हो या कड़वी लगे। मुंहफठ की हमेशा कोशिश होती है कि सामने वाले को उसकी कमजोरी को या किसी भी तरह से ताना मारकर आहत करना उद्देश्य होता है। ऐसे लोगों से दूर रहना ही बेहतर होगा
ईमानदार होने का मतलब ही है स्पष्टवादी होना। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक सच्चा और ईमानदार इन्सान स्पष्टवादी होता हैं. उसका व्यवहार दिखावे की बजाय स्वप्रेरित होता हैं. उनके व्यवहार में इनके ये गुण स्पष्ट देखे जा सकते हैं. यदि एक व्यक्ति ईमानदारी और सच्चाई की राह पर चलता हैं तो देर से ही सही समाज में हर कोई उसका सम्मान करेगा तथा वक्त पड़ने पर वे उनके साथ खड़े नजर आएगे. वहीँ दूसरी तरफ स्वार्थी, झूठे और चोर प्रवृत्ति के व्यक्ति कभी किसी का भला नहीं चाहते हैं वे हमेशा औरों को पीड़ित ही देखना चाहते हैं. इस तरफ के लोगों के साथ समाज भी वैसा ही व्यवहार व सोच रखता हैं जैसी वे स्वयं रखते हैं। व्यवहार कुशलता भी एक कला है कि कब किस मुद्दे पर कितना बोलना है और उसका सामने वाले पर और कभी कभी स्वयं पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है और यहीं पर आपके बोल को स्पष्टवादी व् मुंहफठ के तराजू में मापने का काम होता है। कहते हैं न इंसान को बोलना सीखने में दो साल लगते हैं तो उसे क्या बोलना है ये सीखने में जिंदगी निकल जाती है।
संक्षेप में मुंहफठ मतलब - असभ्य होना, अपने मद में चूर होकर छोटे बड़े का ध्यान न रखना, हमेशा दूसरे को अपमानित करने की कुचेष्ठा रखना, दुसरो की भावनाओं की कद्र न करना, कभी कभी जानबूझ कर सामने वाले को छोटा दिखाने की कोशिश करना, इस तरह की सोच वाले के अंदर अहम् भी कूट कूट कर भरा रहता है। ऐसे लोग दोस्त हो या रिश्तेदार इनको दूर रखिये ये कभी आपके नहीं हो सकते। शायद इन्हीं लोगों के लिए गीतकार इन्दीवर ने फ़िल्म उपकार में एक बेहतरीन गाना लिखा है जो आज के रिश्तों को आइना दिखाती है " कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं नातों का क्या सुख में तेरे साथ चलेंगे दुख में सब मुख मोड़ेंगे दुनिया वाले…. दुनिया वाले तेरे बनकर तेरा ही दिल तोड़ेंगे देते हैं…. देते हैं भगवान को धोखा इन्सां को क्या छोड़ेंगे आज एक सच्चे स्पष्टवादी दोस्त हो या रिश्तेदार, उसके विचारों को ईमानदारी से स्वीकार कीजिये और जहां जरूरत हो, और जहां गुंजाईश हो अपने आप को सुधारिये। पर जब कभी लगे कोई दोस्त या रिश्तेदार आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचा कर अपने आप को श्रेष्ठ साबित की कोशिश कर रहा है, उसी वक्त स्पष्टता के साथ अगले को अपनी वाजिब प्रतिक्रिया देना भी जरुरी है भले ही उस दोस्ती या रिश्तों में दूरी आ जाए। किसी से कोई उम्मीद मत रखिये अपने आप को परिस्थितियों के अनुकूल ढालिये। किसी ने क्या खूब कहा है

दोस्ती

दोस्ती जीवन में मित्रों यारो दोस्तों का अपना अलग ही महत्व हैं. इनके बिना जीवन बेरंग सा प्रतीत होता हैं. हम जीवन में कई लोगों से मिलते हैं कई दोस्त बनाते है मगर कुछ दोस्त खास होते हैं और उनके जाने के बाद जीवन में एक शून्य बन जाता है और वो कभी भर नहीं पता ।



मेरा बेस्ट फ्रेंड राजीव, हमारे बीच कई सारी समानताएं थी जिसके कारण वह मुझे बेहद प्रिय था । हम दोनों एक ही स्कूल की एक ही क्लास में पढ़ते थे इस कारण हमारा आना जाना भी साथ होता हैं. मुझे स्कूल के डेली होम वर्क हो या जिंदगी के किसी भी मोड़ पर कोई भी परेशानी हो, हमेशा साथ रहता और मेरी भी सोच उसके प्रति ऐसी ही थी ।  

लगभग 15 वर्ष पूर्व मेरे एक अच्छे मित्र की मृत्यु कैंसर से हो गई, वह 45 वर्ष का था । हालाँकि हम अक्सर नहीं मिलते थे, मैं इंडिया के एक तरफ रहता था और वह दूसरी तरफ, लेकिन हम निरन्तर सम्पर्क में रहते, हम खूब हंसते थे और घंटों बातें करते थे । साथ में भविष्य की प्लानिंग करते थे । 

उनका एक प्यारा परिवार था, वो बैंक में ऑफिसर था, वो हर तरह से एक खुश, सफल व्यक्ति था । हम सभी जानते थे कि वह मरने वाला है, डॉक्टर जवाब दे दिया था और ये बात उसे भी मालूम थी, लेकिन हैरानी की बात यह है कि उसकी आँखों में कोई उदासी नहीं थी और हममें से कोई भी उसके आस-पास रहने या यहाँ तक कि अपरिहार्य के बारे में बात करने में असहज महसूस नहीं करता था। 

उसके बारे में यह अजीब शांति थी । कोई हड़बड़ी नहीं, कोई कड़वाहट नहीं । जब मैंने उससे पूछा कि वह जीवन और मृत्यु के बारे में कैसा महसूस करता है, तो उसने यही कहा: 

"जब मैं एक बच्चा था तो हमारे पड़ोस के रमणा अंकल के घर में दो कुत्ते हुआ करते थे, दोनों आँगन में बंधे रहते थे, उनमें से एक कुत्ता दिन भर इधर-उधर पड़ा रहता था, जो टाइम से जो दो खा लेता फिर कहीं एक किनारे जा कर लेट जाता, दिन भर लेटे रहता था या पूरे दिन सोते रहता था। अगर कोई उसे उठाता तो वह बिना किसी परेशानी के उन्हें अपनी आंखों के कोने से देखता और फिर वापस वही चला जाता जो वह पहले कर रहा था, कुछ भी नहीं । 

दूसरे की एक अलग कहानी थी । यह ऊर्जा से भरा था या शायद गुस्से से भी । हमेशा अपनी जंजीर को चीरते हुए, हमेशा बंधे रहने के खिलाफ लड़ते रहता; मुक्त होना चाहता था, एक तरह से या किसी अन्य। हर मौके पर सभी पर भौंकना, ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करना । 

मैं उन दो कुत्तों और उनके बहुत से निपटने के लिए चुने गए दो अलग-अलग तरीकों को कभी नहीं भूलूंगा । एक, परिस्थितयों के आगे समर्पण कर दिया और दूसरा हर संभव तरीके से संघर्ष कर इसे बदलने की कोशिश करता था हालांकि दुर्भाग्य से, काफी व्यर्थ था । 

मैं लोगों के साथ ऐसा ही देखता हूं । एक, जिसने जीवन को 'हाँ 'कहा है और दूसरा जिसने 'ना' कहा है । मैंने तब निर्णय लिया था कि मैं जीवन को हाँ कहूंगा, इसे पूरी तरह से जीऊंगा, हर अवसर का सर्वोत्तम लाभ उठाऊंगा। जीवन में जिस किसी को मेरी जरूरी होगी हमेशा खड़ा रहूंगा। हर दिन ऐसे जियूँगा जैसे कि यह मेरा आखिरी दिन हो, यह सुनिश्चित करते हुए कि मुझे कुछ न करने या हमारे इस जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ समय नहीं बनाने या किसी भी अधूरे काम को पीछे छोड़ने का पछतावा नहीं होगा। ” 

 हम पूरी रात ऐसे ही बातें करते रहे, जैसे पहले कई बार करते थे । वह दिन मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था । मेरा दोस्त उस दिन मेरे लिए और बन गया। वह मेरा गुरु और आदर्श बना । मैंने उसके उदाहरणों का पालन करने की कोशिश की है, जो मुझे दिया गया है उसका सबसे अच्छा उपयोग कर रहा हूं और हर दिन जी रहा हूं, मुझसे जो बन पड़े लोगों की मदद करता हूँ क्योंकि यह मेरा आखिरी दिन है, यही सोच कर जिंदगी की डगर में आगे बढ़ रहा हूँ ।

मंगलवार, 29 मार्च 2022

इंसानियत जिन्दा है

आज माह का आखिरी दिन, कल से एक नया दिन नया महीना और फिर से वही ऑफिस, वही लोग। बस इतना सा फ़र्क होगा कि कल हमारे बॉस श्याम सर ऑफिस में नहीं रहेंगे और उनके लिए ये माह का आखिरी दिन, अब उनके कार्यकाल का आखिरी दिन है। 

श्याम सर एक सुलझे हुए इंसान, सबको साथ लेकर चलने वाले, हमेशा शान्त, उनकी अपने काम में पकड़ जिसके चलते पूरे विभाग में उनकी बहुत इज्जत है।उनका बचपन, शिक्षा इसी शहर में हुई और उनकी किस्मत अच्छी रही कि इसी शहर में सरकारी नौकरी भी मिल गई। जैसा श्याम सर का व्यवहार उसी तरह का उनकी मैडम का भी व्यवहार था वो भी मिलनसार, मृदुभाषी है। सब ठीक था पर उनकी कोई संतान नहीं थी जिसका उन लोगों को हमेशा से ही दुख रहता था फिर भी दोनों सभी सहकर्मियों के सुख दुख में हमेशा साथ खड़े रहते थे।

उनका ससुराल तरफ से सारे रिश्तेदार कर्नाटक में बंगलौर के आस पास ही रहते है।हम लोगों ने उनको बहुत समझाया कि आप यहीं पढ़े लिखे हो और बचपन से यहीं पले बढ़े हो फिर क्यों न यहीं रह जाएं पर उनका एक ही जवाब था तुम लोगों को मालूम है कि हमारा अपने भाइयों से कोई सम्बन्ध नहीं है और शुरू से ही हमारी हर जरूरत में आप सब लोगों का साथ रहा है। मैं आप लोगों का सदैव कृतज्ञ रहूंगा, पर एक वक़्त के बाद किसी की मदद लेने में संकोच होता है और यूं लगता है जैसे हम किसी का उपयोग कर रहे हैं। हमने श्याम सर को अत्यन्त दुख के साथ फेयरवेल पार्टी दे कर विदाई दी। और वो यहां से शिफ्ट हो कर बंगलौर चले गए जहां शहर से करीब 20-25 किलोमीटर दूर एक टू बीएचके फ्लैट लिया हुआ है।

उनके जाने के बाद भी उनसे संपर्क रहा है वो भी इसलिए कि उनका मेरा ऑफिस के साथ साथ पड़ोसी का भी रिश्ता रहा है। यूं ही कुछ समय गुजर गया और हम लोग भी महीने में एकाध बार बात कर लिया करते थे। एक बार यूं ही बातों बातों में उन्होंने बताया कि भोपाल के माहौल और यहां दक्षिण के माहौल में जमीन आसमान का फर्क है। यहां हर कोई अपने परिवार तक ही सीमित रहता है, किसी को फ़र्क नहीं पड़ता कि पड़ोस में कौन है क्या करता है। उनके साढू के बच्चे थे पर वो भी बीस पच्चीस किलो मीटर दूर रहते हैं और आगे उन्होंने बताया।एक दिन मैडम का तबियत अचानक खराब हो गया और उनके सीने में बहुत तेज दर्द हो रहा था, मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मैंने सबको फोन लगाया पर कोई फोन नहीं उठा रहा था। रात के करीब दो बज रहे थे, मेरा घर मेन रोड से करीब तीन किलोमीटर अंदर की तरफ है। मेरे अपार्टमेंट में चार फ्लैट हैं सबका दरवाजा खटखटाया पर कोई नहीं खोला, मैं नया नया था फ्लैट में किसी का मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था। मैं घबराया हुआ फ्लैट से बाहर निकल कर मेन रोड के तरफ बढ़ने लगा और साथ ही साथ सभी को फोन भी करता रहा। तभी एक अजनबी व्यक्ति अपनी बाइक से क्रॉस किया और आगे बढ़ गया फिर कुछ दूर जा कर वापस आया और बोला -

"क्या बात है अंकल सब ठीक है न, आप इतनेघबराए हुए क्यों हो ?" 

"मेरी मिसेज की तबियत बहुत खराब है कोई गाड़ी नहीं मिल रही है, किसी से बात नहीं हो पा रही है मुझे बहुत डर सा लग रहा है", मैंने उस अजनबी को बताया। 

वह बोला "अंकल आप घर पहुंच कर आंटी को रेडी करिए मैं गाड़ी लेे कर आता हूं बेटा मेरा फ्लैट उस बगल में है

"मैं आपको भी जनता हूं और आपके फ्लैट को भी, प्लीज़ जल्दी घर जाइए मैं आता हूं।" 

मैं एक नई आस लेे कर अपने फ्लैट में पहुंचा और मिसेज को रेडी होने को कहा, उतने में ही डोर बेल बजा, मैंने दरवाजा खोला तो देखा कि दरवाजे पर एक तीस पैंतीस वर्ष की महिला खड़ी है 

"कहिए" मैंने उस महिला से पूछा

"अंकल मैं आपके पड़ोस वाले अपार्टमेंट में रहती हूं मेरे मिस्टर ने मुझे आंटी को रेडी करने हेतु भेजा है" 

मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही वो बोलीं

"अंकल अभी जो आप से बाहर मिले थे वो मेरे हसबैंड हैं"

 "ओके ओके अंदर आ जाओ",

 मैंने कहा फिर उस महिला ने मिसेज को रेडी कर, मैं और वो पड़ोसन मिलकर मिसेज को नीचे ले कर आए तब तक वह अजनबी व्यक्ति मेरे फ्लैट के सेलार में लिफ्ट के पास अपनी गाड़ी पार्क कर खड़ा हमारा ही इंतजार कर रहा था। हम किसी तरह सिटी हॉस्पिटल पहुंचे और उनकी सहायता से मिसेज को कैसुअल्टी में ज्वाइन किया। फिर डॉक्टर तुरन्त बीपी, ईसीजी वगैरा करने के बाद निश्चिंत होकर कहा घबराने की कोई बात नहीं, ये माइल्ड हार्ट अटैक था तो खुशी की बात है कि समय पर इन्हें लेे आए वरना मुश्किल हो जाती, बस इनको ऑब्जर्वेशन में 72 घंटे यहां रखना होगा। मैंने इत्मीनान की सांस ली।तब वापस होश संभाला और तब उस अजनबी फरिश्ते से वार्तालाप करने लगा। 

 "थैंक यू सर, आज अगर आप न होते तो मैं क्या करता ये सोच कर अभी भी दिल घबरा जाता है

"कोई बात नहीं अंकल ये तो एक पड़ोसी कादूसरे पड़ोसी के प्रति फ़र्ज़ था। वैसे भी आप मुझे सर न कहें। मेरा नाम संजीव है और मैं आपके बगल के अपार्टमेंट में रहता हूं और मैं आपको अच्छी तरह जानता हूं, हो सकता है अपना औपचारिक परिचय न हो पर आपके बारे में पूरी खबर मुझे मेरा दोस्त बताता रहता है जो आप ही के अपार्टमेंट में रहता है। मैं भी आपको सुबह शाम वाकिंग हेतु जाते हुए देखा है। मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं इसलिए हमारे ऑफिस से आने का कोई समय निश्चित नहीं होता। आज भी मुझे दस बजे तक वापस आ जाना था पर कुछ जरूरी महत्वपूर्ण काम से रुकना पड़ गया था।

जो भी हो बेटा शायद ऊपर वाले ने आपके रूप में हमारी मदद करी है, मैंने फिर एक बार उस फरिश्ते को धन्यवाद कहा। मैं सोचने लगा कि इस अजनबी शहर में इस तरह मदद मिलना वाकई में चमत्कार से कम नहीं है। बस एक बात को तो हमको मानना ही पड़ेगा कि आज के समय में जहां भाई भाई का नहीं होता, हर तरफ झूठ, धोखे हैं फिर भी "इंसानियत" आज भी जिंदा है बस कभी कभी नजर आता है।

चलते चलते

ख्वाहिशों से डर कर यूँ चलते चलते एक मोड़ पर

जिंदगी को गुमशुम सा तड़पते पाया है 

वक्त पास खड़ा, जिंदगी को समझा रहा था 

दर्द को कभी सिसकियाँ तो कभी आंसू बन कर

आँखों से बहते पाया है 

सहम सी गई है जिंदगी, कभी अपनों ने, 

कभी किस्मत ने, तो कभी वक्त ने थकाया है

ए दुनिया के रखवाले क्या है तेरी मर्जी बता

क्या तूने हमें पैदा कर इस हालत में 

हमें अपनी औकात दिखा कर 

अपनी ताकत का एहसास कराया है।

अच्छाई

हमारे दैनिक जीवन में बहुधा सुनने में आता है कि फलां व्यक्ति बुरा है या फलां व्यक्ति अच्छा है। बुरे की बात तो समझ में आती है पर अच्छा कौन होत...